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Showing posts from 2019

अब तो हवाओं के दुवाओं में भी असर आने लगा है

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हम बोले, तो कैसे बोले !

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 हम फिजाओं में.......                मोहब्बत की खुशबू घोले तो कैसे घोलें ?        उनको हम अपना बोले भी तो कैसे बोले ?         वो कहते हैं .........        मेरे दिल में कोई और है !       अब उनके दिल के सामने,        हम इश्क की गठरी खोले तो कैसे खोले                                          सिर्फ आपके लिए🌕🌔🌙 ✍️✍️✍️अद्वितीय ऋषि कपूर भारती🙏🙏🙏

नज़्म

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         वो कातिल भी है, वो रहबर भी है,          वो शोले भी है, लबो पे शबनम भी है,          ---------------------------------------          और क्या-क्या हम, बयां करे.........            वो मुद्दई भी है, वो मुक्कदर भी है!                     ✍️✍️✍️   अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

शायरी

                                   गरीबी के पैमाने को हम कुछ इस तरह ,                  झेंप लिया करते है,                  झुकीं होंगी तुम्हारी सरपरस्ती में दुनिया भर की                  घड़िया,                  न होती है घड़ी तो हम माँ के चरणों में समय                  देख लिया करते है.........           ✍️✍️  अद्वितीय ऋषि कपूर भारती ✍️✍️      

तू भुलवलु त का हम तोहके भुला दी ( अद्वितीय ऋषि कपूर भारती)

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तू भुलवलु त का हम तोहके भुला दी (भोजपुरी नज्म)           तू भुलवलु त का हम तोहके भुला दी          तोहरा कहला से हम प्यार के पहिला निशानी मिटा दी         मननी की तू पत्थर के हो गइलू          त का वो पत्थर के हम खुदा बना दी    अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

किस मिटटी के बने हो तुम (अद्वितीय ऋषि कपूर भारती)

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       किस मिट्टी के बने हो तुम।    (शायरी)             किस मिट्टी के बने हो तुम मुझे मालूम नहीं है             तुम तो मेरे कातिल को भी कह दोगे              कि यह जालिम नहीं है,             मुकदमा चला अगर हुस्न की अदालत में            गवाही देने ग़र तुम गए ,तो तुम कह दोगे,            की ये लश्कर उस भीड़ में शामिल नहीं है                                                       "अद्वितीय ऋषि कपूर भारती"

शायरी ( अद्वितीय ऋषि कपूर भारती)

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                  क्या कहे हम कहां से आए हुए हैं            क्या कहे हम कहां से आए हुए हैं           छाया से अब डर लगता है          धूप के  भी सताए हुए हैं कैसे उनको लगती नहीं है, अच्छी महलों की जिंदगानी पानी में सर को शौक से भिगाए हुए है हम मजबूरी में सर को ,पानी से ही छिपाए हुए हैं              अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

खैर कोई बात नहीं ( Vishal Kumar)

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पहले हंस के मुस्कुराके सामने आया करते थे तुम अब तो चेहरे पर केवल फरेब ही नजर आता है लगता है जैसे कोई मुलाकात नहीं ख्यालात नहीं खैर कोई बात नहीं. .... अबअब तू मेरे साथ नहीं कभी पलके जगती थी तेरे इंतजार में दिल धड़कता था तेरा मेरे इस प्यार में मैं तुम्हें समझ ना पाया मृदुल धोखो के बाहर में कि अब तुझसे कोई जज्बात नहीं... खैर कोई बात नहीं अब तू मेरे साथ नहीं वो दिन था कि खुशियां लुटा था तब तुझ पर तनिक भी ना गुस्सा दिखाता था तुझ पर वही प्यार करो पर बरसा रही हो सच में नजरों से मेरे तुम गिरती जा रही हो मेरे सामने केवल दिन है रात नहीं खैर कोई बात नहीं अब तू मेरे साथ नहीं पल पल पल तरसते थे मिलने को तुम अब तो बरसो गुजर जाते हैं कोई मुलाकात नहीं खैर कोई बात नहीं क्योंकि अब तू मेरे साथ नहीं                               विशाल कुमार

Shayri

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            लोग आजकल वफाओं को भी भुला देते हैं              कर्मों का हिसाब सूली पर चढ़ा देते हैं              एरावत बने हुए हैं लोग.......              महावत को भी बसुधा पर बिठा देते हैं              ए जयादे खाने के चक्कर में.........  सिद्धांत वादियों को भी असली दांत दिखा देते हैं                      अद्वितीय ऋषि कपूर भारती                 (आज का महसूस ,जीवन की सीख)

इरादा

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मन तो मेरा भी था उड़ान भरने की पर आसमान न मिला....... जिंदगी को जीतने के चक्कर में...... कभी आराम ना मिला...... मेरा दिल तो कब का टूट चुका था...... जिसे ढूंढ रहा था मैं उसका मकान ना मिला                    विशाल कुमार
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बारिश का मौसम है धीरे-धीरे गुजर जाएगा  लगी है ठोकर अब वह सुधार जाएगा मां बाप की सत्ता से बेदखल होने पर प्रेमियों के दिमाग से आई लव यू का बुखार उतर जाएगा मिल चुका है सिला उसको यह दौर ए जहां अब गुजर जाएगा इसके सीने में प्रेम का दर्द हो रहा है है जिधर मयखाना अब  वह उधर जाएगा

दर्द देकर दवा बांट रहे हैं तो हम क्या करें ?

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दर्द देकर दवा बांट रहे तो हम क्या करें ? खंजर सीने में लगाकर पीठ सहला दे रहे है तो हम क्या करें चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है और बोलने भी नहीं दिया जा रहा तो हम क्या करें वह हमसे रूठ कर के दुश्मनों के साथ बैठे हैं खैर दोस्तों के लिस्ट में उनका का नाम नहीं है तो हम क्या करें मैं थक चुका था उनकी महफिल में आवाज दे देकर अबअब उन पास पास नहीं है तो समंदर में हिचकोले खा रहे हैं हमारे पास वक्त नहीं है तो हम क्या करें                                         अद्वितीय ऋषि कपूर भारती
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 अपनी खुशियों को जला रहा हूं मै गमों को छुपा रहा हूं मै ऐसा लग रहा है निकला हूं रात के अंधेरे में कुदरत को भी पता नहीं कहा जा रहा हूं मै,,,,,,,,, वादों की याद में चेहरा मनभावन सा लगता है उसकी जुल्फों को देख कर मेरा तन मन से सुलगता है क्या खूब दिया है मोहब्बत का सिला मैं दुनिया को बताऊंगा स्मृति पटल बेचैन है आज मैं एक नया गीत गाऊंगा,,,,,,,,,,,,                           " अद्वितीय कपूर भारती "

ढोंग

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                            - ढोंग  की चादर - कुछ पास तो अब भी रहे  लेकिन ऐसा लगता है बेगाने हो गए है चरम सीमा पर घूसखोरी का चलन बोल बाला है अफसर बाद और कुर्सी वाद का अब एक-एक करके संत भी दीवाने हो गए कलम के बल पर चलने वाले  शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए हर बच्चों की जुबां पर  बलात्कारियों के सूची में  आसाराम और राम रहीम अब पुराने हो गए कलम के बल पर चलने वाले  शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए लहरों का नाम तुमने संगम दे रखा है  वाह गजब रत्ती को तुम ने सोने से ताला है  क्योंकि बलात्कारियों का नाम तुम नहीं बाबू दे रखा है  यह तुम्हें रास नहीं आएगा  तुम्हारे नींदों को उड़ा ले जाएगा  क्योंकि तुम ही ने जहर का नाम दवा जो रखा है                   

कविता (धोखा)

जिंदगी की दौड़ में कुछ रुठे हैं ...                         कुछ छूटे हैं....                         कुछ सच्चे हैं..                         कुछ झूठे हैं... पर इन सब हवाओं में भी, हर बार सताया जाता हूं, हर बार रुलाया जाता हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमिया केवल धोखे ही खाता हूं। इस बेपरवाह दुनिया के, कुछ हिस्से सच के हैं ही नहीं, मैं समझ सका ना फरेबो को, हर बार बिखर सा जाता   हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमियां केवल धोखे खाता।                                      Vishal kumar जिसे मान चुका था मैं अपना, वह मुझे कटु गीत सुनाता है, खुद सोलो पे चलकर, वह अंगारा मुझे बनाता है, अग्निपथ का बाण फिर, सीने पर मेरे चलाता है, फिर जख्मों को भरने के खातिर,               ...

कविता

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ना डर था ठोकरों कि ना डर कठिनाईयों का था उड़ाकर पतंग जैसे आसमानों को छूकर बुलंदियों पर पहुंच जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन  तितलियों का दीवाना था कभी सोचा ना था कि बचपन यूं ही गुजर जाएगा बेगाने अपने और अपना पराया हो जाएगा बनाकर नाव को कश्तियां सागरों के पार जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन  तितलियों का दीवाना था मां की ममता बहन का प्यार सताते हैं हमको हमेशा वो यार कभी छोटी-छोटी गलतियों पर पापा से मार खाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा मन तितलियों का दीवाना था                                   (  विशाल सर की कलम से........) लगता है अब हम हार गए  हवा भरे गुब्बारे को मेले में लेने सौ सौ बार गए है अब गांव में जब भी बाढ़ आती है  सच में बचपन की बहुत याद आती है पानी में अपनी नाव चलाना झट से पेड़ पर चढ़ जाना गिल्ली डंडा खेल कर शाम को मन  बहलाना था पर क्या करें बचपन में मेरा भी मन तितलियों का दीवाना था वह मदारी के पीछे भागना क...

नज़्म

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जिंदगी में बड़ा झमेला है हमने सर्पों का दंश भी झेला है उसने सावक संग भी खेला है  तभी तो भारतवर्ष में लगा धर्मों का मेला है      अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

नज़्म

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 मैं जहर खोज रहा हूं अमृत की बस्ती में मिलेगा क्या ? धुएं ने आसमान में जाले बना दिए सूर्य उससे रुकेगा क्या ? मेरे भावना से खिलवाड़ करके  तुम मुझसे दूर जा रहे हो मेरे जितना तुमसे कोई मोहब्बत करेगा क्या ? मेरी आशाओं का एक घायल से अचेत पड़ा है जैसे जज्बातों की कलम में स्याही सूख गई है अब वह चलेगा क्या ? वो मरा नहीं है  जिसकी अंतिम सांस अभी भी अटकी है वो जलेगा क्या ? शहनाइयां लाख बजाओ तुम भले ही वीरों को श्रृंगार का चादर ओढ़ाओ तुम दुल्हन जिसकी मौत है  वो दूल्हा कभी बनेगा क्या ?                  अद्वितीय  ऋषि  कपूर भारती

कविता

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      हे ! वत्स   खंजन नयन में अंजन नहीं मस्तक पर तिलक नहीं , हस्त  में न भाल ले ले...ले... ले.... बेटे ये मां नाम का चादर है         तू अपने तन पर डाल ले   झुक कर मत चलना  देखना तुम बाजीली निगाहों से  उत्तुंग शिखर पर चितचोर अरि भी बैठा होगा  रक्त और रुधिर तुम्हारा पीने कालसर्प भी ऐठा होगा शौर्य की गाथा राष्ट्र गाएगा जवानी को तू अपने छान ले ले...ले... ले... बेटे मां नाम का चादर है  तू अपने तन पर डाल ले उपाधियों को ध्यान में रख  राष्ट्र का अभिमान ले कर जोड़ गिराते हुए शत्रु का  आश्रय दाता बन जा न तू उसकी जान ले ले... ले... ले... बेटे मां नाम का चादर है  तू अपने तन पर डाल ले   प्रहरी तू देश का है स्वदेश का अभिमान ले हो काशी वाला या कर्बला का  भक्षक हो राष्ट्र का गर  नीसंकोच दुश्मन तू अपना मान ले ले... ले... ले... बेटे ये मां नाम का चादर है  तू अपने तन पर डालें इन बूढ़ी आंखों की आशा है तू गम में खुशियों की परि...

नज़्म

दौलत को ठोकर लगा है मोहब्बत के क़दमों में जाके गिरा है , गमो में खुशियों की महफ़िल सजा है ऋषि जो कुछ भी है, उसकी जननी मां शारदे की दुआ है !!                           अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

कविता

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      सांसे रुक रही है मेरी मैं अंतिम सफर पर हूं , समाचार नहीं पूछोगे क्या ? नफरत तो तुम बहुत दिए प्यार नहीं दोगे क्या ?                            झूठी खबरों से उठ चुका हूं                          अखबार नहीं दोगे क्या ?  नाविक हो तुम भवसागर के मुझे उस पार नहीं करोगे क्या ? तुम्हारी धमकियों से तंग आ चुका हूं मुझ पे वार नहीं करोगे क्या माना कि सहने वाले सभी गुलाम है  तो क्या जालिम को खुदा कहोगे क्या ? जगत जनानिया मर रही है जगत जनानियो के पेटो में समाज को भ्रूण हत्या से जुदा करोगे क्या ? जल रहा है राष्ट्र मेरा  घूसखोरी और बलात्कारी के उजाले में उसे बुझा कर मुझे शीतल का परिचय दोगे क्या ? अब सत्ताधिशो के आगे  लोकतंत्र दम तोड रहा है जुर्म सहने वाला न्यायालय में क्यों हाथ जोड़ रहा है ?  लेखनी में धार नहीं है शाही अभी भी सो रही है  दिन के उजाले में लू...

कविता

    दुविधा ओं का दौर खुला अब     अपने गिरेबा में तुम झांक लो     कहते हो पर्याप्त शिक्षा है समाज में     तो तुम गलत हो ......     जरा रुको ,     कूड़े मे भोजन तलाशने वाले     चेहरे की और एक बार तुम ताक लो।                           अद्वितीय कवि ऋषि कपूर भारती