Posts
Showing posts from 2019
तू भुलवलु त का हम तोहके भुला दी ( अद्वितीय ऋषि कपूर भारती)
- Get link
- X
- Other Apps
खैर कोई बात नहीं ( Vishal Kumar)
- Get link
- X
- Other Apps
पहले हंस के मुस्कुराके सामने आया करते थे तुम अब तो चेहरे पर केवल फरेब ही नजर आता है लगता है जैसे कोई मुलाकात नहीं ख्यालात नहीं खैर कोई बात नहीं. .... अबअब तू मेरे साथ नहीं कभी पलके जगती थी तेरे इंतजार में दिल धड़कता था तेरा मेरे इस प्यार में मैं तुम्हें समझ ना पाया मृदुल धोखो के बाहर में कि अब तुझसे कोई जज्बात नहीं... खैर कोई बात नहीं अब तू मेरे साथ नहीं वो दिन था कि खुशियां लुटा था तब तुझ पर तनिक भी ना गुस्सा दिखाता था तुझ पर वही प्यार करो पर बरसा रही हो सच में नजरों से मेरे तुम गिरती जा रही हो मेरे सामने केवल दिन है रात नहीं खैर कोई बात नहीं अब तू मेरे साथ नहीं पल पल पल तरसते थे मिलने को तुम अब तो बरसो गुजर जाते हैं कोई मुलाकात नहीं खैर कोई बात नहीं क्योंकि अब तू मेरे साथ नहीं विशाल कुमार
दर्द देकर दवा बांट रहे हैं तो हम क्या करें ?
- Get link
- X
- Other Apps
दर्द देकर दवा बांट रहे तो हम क्या करें ? खंजर सीने में लगाकर पीठ सहला दे रहे है तो हम क्या करें चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है और बोलने भी नहीं दिया जा रहा तो हम क्या करें वह हमसे रूठ कर के दुश्मनों के साथ बैठे हैं खैर दोस्तों के लिस्ट में उनका का नाम नहीं है तो हम क्या करें मैं थक चुका था उनकी महफिल में आवाज दे देकर अबअब उन पास पास नहीं है तो समंदर में हिचकोले खा रहे हैं हमारे पास वक्त नहीं है तो हम क्या करें अद्वितीय ऋषि कपूर भारती
- Get link
- X
- Other Apps
अपनी खुशियों को जला रहा हूं मै गमों को छुपा रहा हूं मै ऐसा लग रहा है निकला हूं रात के अंधेरे में कुदरत को भी पता नहीं कहा जा रहा हूं मै,,,,,,,,, वादों की याद में चेहरा मनभावन सा लगता है उसकी जुल्फों को देख कर मेरा तन मन से सुलगता है क्या खूब दिया है मोहब्बत का सिला मैं दुनिया को बताऊंगा स्मृति पटल बेचैन है आज मैं एक नया गीत गाऊंगा,,,,,,,,,,,, " अद्वितीय कपूर भारती "
ढोंग
- Get link
- X
- Other Apps
- ढोंग की चादर - कुछ पास तो अब भी रहे लेकिन ऐसा लगता है बेगाने हो गए है चरम सीमा पर घूसखोरी का चलन बोल बाला है अफसर बाद और कुर्सी वाद का अब एक-एक करके संत भी दीवाने हो गए कलम के बल पर चलने वाले शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए हर बच्चों की जुबां पर बलात्कारियों के सूची में आसाराम और राम रहीम अब पुराने हो गए कलम के बल पर चलने वाले शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए लहरों का नाम तुमने संगम दे रखा है वाह गजब रत्ती को तुम ने सोने से ताला है क्योंकि बलात्कारियों का नाम तुम नहीं बाबू दे रखा है यह तुम्हें रास नहीं आएगा तुम्हारे नींदों को उड़ा ले जाएगा क्योंकि तुम ही ने जहर का नाम दवा जो रखा है
कविता (धोखा)
- Get link
- X
- Other Apps
जिंदगी की दौड़ में कुछ रुठे हैं ... कुछ छूटे हैं.... कुछ सच्चे हैं.. कुछ झूठे हैं... पर इन सब हवाओं में भी, हर बार सताया जाता हूं, हर बार रुलाया जाता हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमिया केवल धोखे ही खाता हूं। इस बेपरवाह दुनिया के, कुछ हिस्से सच के हैं ही नहीं, मैं समझ सका ना फरेबो को, हर बार बिखर सा जाता हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमियां केवल धोखे खाता। Vishal kumar जिसे मान चुका था मैं अपना, वह मुझे कटु गीत सुनाता है, खुद सोलो पे चलकर, वह अंगारा मुझे बनाता है, अग्निपथ का बाण फिर, सीने पर मेरे चलाता है, फिर जख्मों को भरने के खातिर, ...
कविता
- Get link
- X
- Other Apps
ना डर था ठोकरों कि ना डर कठिनाईयों का था उड़ाकर पतंग जैसे आसमानों को छूकर बुलंदियों पर पहुंच जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन तितलियों का दीवाना था कभी सोचा ना था कि बचपन यूं ही गुजर जाएगा बेगाने अपने और अपना पराया हो जाएगा बनाकर नाव को कश्तियां सागरों के पार जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन तितलियों का दीवाना था मां की ममता बहन का प्यार सताते हैं हमको हमेशा वो यार कभी छोटी-छोटी गलतियों पर पापा से मार खाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा मन तितलियों का दीवाना था ( विशाल सर की कलम से........) लगता है अब हम हार गए हवा भरे गुब्बारे को मेले में लेने सौ सौ बार गए है अब गांव में जब भी बाढ़ आती है सच में बचपन की बहुत याद आती है पानी में अपनी नाव चलाना झट से पेड़ पर चढ़ जाना गिल्ली डंडा खेल कर शाम को मन बहलाना था पर क्या करें बचपन में मेरा भी मन तितलियों का दीवाना था वह मदारी के पीछे भागना क...
नज़्म
- Get link
- X
- Other Apps
मैं जहर खोज रहा हूं अमृत की बस्ती में मिलेगा क्या ? धुएं ने आसमान में जाले बना दिए सूर्य उससे रुकेगा क्या ? मेरे भावना से खिलवाड़ करके तुम मुझसे दूर जा रहे हो मेरे जितना तुमसे कोई मोहब्बत करेगा क्या ? मेरी आशाओं का एक घायल से अचेत पड़ा है जैसे जज्बातों की कलम में स्याही सूख गई है अब वह चलेगा क्या ? वो मरा नहीं है जिसकी अंतिम सांस अभी भी अटकी है वो जलेगा क्या ? शहनाइयां लाख बजाओ तुम भले ही वीरों को श्रृंगार का चादर ओढ़ाओ तुम दुल्हन जिसकी मौत है वो दूल्हा कभी बनेगा क्या ? अद्वितीय ऋषि कपूर भारती
कविता
- Get link
- X
- Other Apps
हे ! वत्स खंजन नयन में अंजन नहीं मस्तक पर तिलक नहीं , हस्त में न भाल ले ले...ले... ले.... बेटे ये मां नाम का चादर है तू अपने तन पर डाल ले झुक कर मत चलना देखना तुम बाजीली निगाहों से उत्तुंग शिखर पर चितचोर अरि भी बैठा होगा रक्त और रुधिर तुम्हारा पीने कालसर्प भी ऐठा होगा शौर्य की गाथा राष्ट्र गाएगा जवानी को तू अपने छान ले ले...ले... ले... बेटे मां नाम का चादर है तू अपने तन पर डाल ले उपाधियों को ध्यान में रख राष्ट्र का अभिमान ले कर जोड़ गिराते हुए शत्रु का आश्रय दाता बन जा न तू उसकी जान ले ले... ले... ले... बेटे मां नाम का चादर है तू अपने तन पर डाल ले प्रहरी तू देश का है स्वदेश का अभिमान ले हो काशी वाला या कर्बला का भक्षक हो राष्ट्र का गर नीसंकोच दुश्मन तू अपना मान ले ले... ले... ले... बेटे ये मां नाम का चादर है तू अपने तन पर डालें इन बूढ़ी आंखों की आशा है तू गम में खुशियों की परि...
कविता
- Get link
- X
- Other Apps
सांसे रुक रही है मेरी मैं अंतिम सफर पर हूं , समाचार नहीं पूछोगे क्या ? नफरत तो तुम बहुत दिए प्यार नहीं दोगे क्या ? झूठी खबरों से उठ चुका हूं अखबार नहीं दोगे क्या ? नाविक हो तुम भवसागर के मुझे उस पार नहीं करोगे क्या ? तुम्हारी धमकियों से तंग आ चुका हूं मुझ पे वार नहीं करोगे क्या माना कि सहने वाले सभी गुलाम है तो क्या जालिम को खुदा कहोगे क्या ? जगत जनानिया मर रही है जगत जनानियो के पेटो में समाज को भ्रूण हत्या से जुदा करोगे क्या ? जल रहा है राष्ट्र मेरा घूसखोरी और बलात्कारी के उजाले में उसे बुझा कर मुझे शीतल का परिचय दोगे क्या ? अब सत्ताधिशो के आगे लोकतंत्र दम तोड रहा है जुर्म सहने वाला न्यायालय में क्यों हाथ जोड़ रहा है ? लेखनी में धार नहीं है शाही अभी भी सो रही है दिन के उजाले में लू...