कविता (धोखा)
जिंदगी की दौड़ में कुछ रुठे हैं ...
कुछ छूटे हैं....
कुछ सच्चे हैं..
कुछ झूठे हैं...
पर इन सब हवाओं में भी,
हर बार सताया जाता हूं,
हर बार रुलाया जाता हूं,
क्योंकि रिश्तो के दरमिया केवल धोखे ही खाता हूं।
इस बेपरवाह दुनिया के,
कुछ हिस्से सच के हैं ही नहीं,
मैं समझ सका ना फरेबो को,
हर बार बिखर सा जाता हूं,
क्योंकि रिश्तो के दरमियां केवल धोखे खाता।
Vishal kumar
जिसे मान चुका था मैं अपना,
वह मुझे कटु गीत सुनाता है,
खुद सोलो पे चलकर,
वह अंगारा मुझे बनाता है,
अग्निपथ का बाण फिर,
सीने पर मेरे चलाता है,
फिर जख्मों को भरने के खातिर,
Rishi Kapoor Bharti
कुछ छूटे हैं....
कुछ सच्चे हैं..
कुछ झूठे हैं...
पर इन सब हवाओं में भी,
हर बार सताया जाता हूं,
हर बार रुलाया जाता हूं,
क्योंकि रिश्तो के दरमिया केवल धोखे ही खाता हूं।
इस बेपरवाह दुनिया के,
कुछ हिस्से सच के हैं ही नहीं,
मैं समझ सका ना फरेबो को,
हर बार बिखर सा जाता हूं,
क्योंकि रिश्तो के दरमियां केवल धोखे खाता।
Vishal kumar
जिसे मान चुका था मैं अपना,
वह मुझे कटु गीत सुनाता है,
खुद सोलो पे चलकर,
वह अंगारा मुझे बनाता है,
अग्निपथ का बाण फिर,
सीने पर मेरे चलाता है,
फिर जख्मों को भरने के खातिर,
Rishi Kapoor Bharti
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