अपनी खुशियों को जला रहा हूं मै
गमों को छुपा रहा हूं मै
ऐसा लग रहा है निकला हूं रात के अंधेरे में
कुदरत को भी पता नहीं कहा जा रहा हूं मै,,,,,,,,,

वादों की याद में चेहरा मनभावन सा लगता है
उसकी जुल्फों को देख कर मेरा तन मन से सुलगता है
क्या खूब दिया है मोहब्बत का सिला मैं दुनिया को बताऊंगा स्मृति पटल बेचैन है आज मैं एक नया गीत गाऊंगा,,,,,,,,,,,,



                          " अद्वितीय कपूर भारती "

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