कविता


    दुविधा ओं का दौर खुला अब
    अपने गिरेबा में तुम झांक लो
    कहते हो पर्याप्त शिक्षा है समाज में
    तो तुम गलत हो ......
    जरा रुको ,
    कूड़े मे भोजन तलाशने वाले
    चेहरे की और एक बार तुम ताक लो।
   
                      अद्वितीय कवि ऋषि कपूर भारती

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