कविता


     


सांसे रुक रही है मेरी
मैं अंतिम सफर पर हूं ,
समाचार नहीं पूछोगे क्या ?
नफरत तो तुम बहुत दिए
प्यार नहीं दोगे क्या ?

                           झूठी खबरों से उठ चुका हूं 
                        अखबार नहीं दोगे क्या ? 

नाविक हो तुम भवसागर के
मुझे उस पार नहीं करोगे क्या ?
तुम्हारी धमकियों से तंग आ चुका हूं
मुझ पे वार नहीं करोगे क्या

माना कि सहने वाले सभी गुलाम है 
तो क्या जालिम को खुदा कहोगे क्या ?
जगत जनानिया मर रही है
जगत जनानियो के पेटो में
समाज को भ्रूण हत्या से जुदा करोगे क्या ?

जल रहा है राष्ट्र मेरा 
घूसखोरी और बलात्कारी के उजाले में
उसे बुझा कर मुझे शीतल का परिचय दोगे क्या ?

अब सत्ताधिशो के आगे
 लोकतंत्र दम तोड रहा है
जुर्म सहने वाला न्यायालय में क्यों हाथ जोड़ रहा है ? 
लेखनी में धार नहीं है शाही अभी भी सो रही है 
दिन के उजाले में लूटा है जिसकी अस्मत
ओ रात के अंधेरे में क्यों रो रही है ?

मैं तुम्हें बगावत सिखाऊंगा
साथ दोगे ये एहसास तो दो
जिंदगी कम है मेरी
एक सांस तो दो !!!!!


             अद्वितीय ऋषि कपूर भारती



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