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Showing posts from April, 2019
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बारिश का मौसम है धीरे-धीरे गुजर जाएगा  लगी है ठोकर अब वह सुधार जाएगा मां बाप की सत्ता से बेदखल होने पर प्रेमियों के दिमाग से आई लव यू का बुखार उतर जाएगा मिल चुका है सिला उसको यह दौर ए जहां अब गुजर जाएगा इसके सीने में प्रेम का दर्द हो रहा है है जिधर मयखाना अब  वह उधर जाएगा

दर्द देकर दवा बांट रहे हैं तो हम क्या करें ?

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दर्द देकर दवा बांट रहे तो हम क्या करें ? खंजर सीने में लगाकर पीठ सहला दे रहे है तो हम क्या करें चुप रहना लोगों को पसंद नहीं है और बोलने भी नहीं दिया जा रहा तो हम क्या करें वह हमसे रूठ कर के दुश्मनों के साथ बैठे हैं खैर दोस्तों के लिस्ट में उनका का नाम नहीं है तो हम क्या करें मैं थक चुका था उनकी महफिल में आवाज दे देकर अबअब उन पास पास नहीं है तो समंदर में हिचकोले खा रहे हैं हमारे पास वक्त नहीं है तो हम क्या करें                                         अद्वितीय ऋषि कपूर भारती
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 अपनी खुशियों को जला रहा हूं मै गमों को छुपा रहा हूं मै ऐसा लग रहा है निकला हूं रात के अंधेरे में कुदरत को भी पता नहीं कहा जा रहा हूं मै,,,,,,,,, वादों की याद में चेहरा मनभावन सा लगता है उसकी जुल्फों को देख कर मेरा तन मन से सुलगता है क्या खूब दिया है मोहब्बत का सिला मैं दुनिया को बताऊंगा स्मृति पटल बेचैन है आज मैं एक नया गीत गाऊंगा,,,,,,,,,,,,                           " अद्वितीय कपूर भारती "

ढोंग

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                            - ढोंग  की चादर - कुछ पास तो अब भी रहे  लेकिन ऐसा लगता है बेगाने हो गए है चरम सीमा पर घूसखोरी का चलन बोल बाला है अफसर बाद और कुर्सी वाद का अब एक-एक करके संत भी दीवाने हो गए कलम के बल पर चलने वाले  शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए हर बच्चों की जुबां पर  बलात्कारियों के सूची में  आसाराम और राम रहीम अब पुराने हो गए कलम के बल पर चलने वाले  शक्तिशाली परिंदे अब पुराने हो गए लहरों का नाम तुमने संगम दे रखा है  वाह गजब रत्ती को तुम ने सोने से ताला है  क्योंकि बलात्कारियों का नाम तुम नहीं बाबू दे रखा है  यह तुम्हें रास नहीं आएगा  तुम्हारे नींदों को उड़ा ले जाएगा  क्योंकि तुम ही ने जहर का नाम दवा जो रखा है                   

कविता (धोखा)

जिंदगी की दौड़ में कुछ रुठे हैं ...                         कुछ छूटे हैं....                         कुछ सच्चे हैं..                         कुछ झूठे हैं... पर इन सब हवाओं में भी, हर बार सताया जाता हूं, हर बार रुलाया जाता हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमिया केवल धोखे ही खाता हूं। इस बेपरवाह दुनिया के, कुछ हिस्से सच के हैं ही नहीं, मैं समझ सका ना फरेबो को, हर बार बिखर सा जाता   हूं, क्योंकि रिश्तो के दरमियां केवल धोखे खाता।                                      Vishal kumar जिसे मान चुका था मैं अपना, वह मुझे कटु गीत सुनाता है, खुद सोलो पे चलकर, वह अंगारा मुझे बनाता है, अग्निपथ का बाण फिर, सीने पर मेरे चलाता है, फिर जख्मों को भरने के खातिर,               ...

कविता

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ना डर था ठोकरों कि ना डर कठिनाईयों का था उड़ाकर पतंग जैसे आसमानों को छूकर बुलंदियों पर पहुंच जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन  तितलियों का दीवाना था कभी सोचा ना था कि बचपन यूं ही गुजर जाएगा बेगाने अपने और अपना पराया हो जाएगा बनाकर नाव को कश्तियां सागरों के पार जाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा भी मन  तितलियों का दीवाना था मां की ममता बहन का प्यार सताते हैं हमको हमेशा वो यार कभी छोटी-छोटी गलतियों पर पापा से मार खाना था मगर क्या करें बचपन में मेरा मन तितलियों का दीवाना था                                   (  विशाल सर की कलम से........) लगता है अब हम हार गए  हवा भरे गुब्बारे को मेले में लेने सौ सौ बार गए है अब गांव में जब भी बाढ़ आती है  सच में बचपन की बहुत याद आती है पानी में अपनी नाव चलाना झट से पेड़ पर चढ़ जाना गिल्ली डंडा खेल कर शाम को मन  बहलाना था पर क्या करें बचपन में मेरा भी मन तितलियों का दीवाना था वह मदारी के पीछे भागना क...