Posts

Showing posts from 2020

नर हो न निराश करो मन को (कविता) अद्वितीय ऋषि कपूर भारती

  नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को संभलो कि सुयोग न जाय चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को नर हो न निराश करो मन को निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तज़ो निज साधन को नर हो, न निराश करो मन को प्रभु ने तुमको दान किए सब वांछित वस्तु विधान किए तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो फिर है यह किसका दोष कहो समझो न अलभ्य किसी धन को नर हो, न निराश करो मन को  किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं जान हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के  फिर दुर्लभ क्या उसके जन को नर हो, न निराश करो मन को  करके विधि वाद न खेद करो निज लक्ष्य निर...

आँशु (जयशंकर प्रसाद)

इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती? मानस सागर के तट पर क्यों लोल लहर की घातें कल कल ध्वनि से हैं कहती कुछ विस्मृत बीती बातें? आती हैं शून्य क्षितिज से क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी टकराती बिलखाती-सी पगली-सी देती फेरी? क्यों व्यथित व्योम गंगा-सी छिटका कर दोनों छोरें चेतना तरंगिनी मेरी लेती हैं मृदल हिलोरें? बस गई एक बस्ती हैं स्मृतियों की इसी हृदय में नक्षत्र लोक फैला है जैसे इस नील निलय में। ये सब स्फुर्लिंग हैं मेरी इस ज्वालामयी जलन के कुछ शेष चिह्न हैं केवल मेरे उस महामिलन के। शीतल ज्वाला जलती हैं ईधन होता दृग जल का यह व्यर्थ साँस चल-चल कर करती हैं काम अनल का। बाड़व ज्वाला सोती थी इस प्रणय सिन्धु के तल में प्यासी मछली-सी आँखें थी विकल रूप के जल में। बुलबुले सिन्धु के फूटे नक्षत्र मालिका टूटी नभ मुक्त कुन्तला धरणी दिखलाई देती लूटी। छिल-छिल कर छाले फोड़े मल-मल कर मृदुल चरण से धुल-धुल कर वह रह जाते आँसू करुणा के जल से। इस विकल वेदना को ले किसने सुख को ललकारा वह एक अबोध अकिंचन बे...

अधूरा ज्ञान

#अधूरा_ज्ञान_खतरनाक_होता_है। 33 करोड़ नहीं 33 कोटि देवी देवता हैं हिंदू धर्म में ; कोटि = प्रकार । देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं । कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता है। हिंदू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उड़ाई गयी की हिन्दूओं के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं... कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में :- 12 प्रकार हैँ :- आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँशभाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...! 8 प्रकार हैं :- वासु:, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। 11 प्रकार हैं :- रुद्र: ,हरबहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। एवँ दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार । कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है । तो इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाएं । यह बहुत ही अच्छी जानकारी है इसे अधिक से अधिक लोगों में बाँटिये और इस कार्य के माध्यम से पुण्य के...

जब आंख खुली तो अम्मा ,की गोदी का एक सहारा था

जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्हा सा अंचल मुझको भूमंडल से प्यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था उसके छाती की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हांथो से बालों को नोचा पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी मैं बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी ऊँगली पकड़ चलाया था पढने विद्यालय भेजा था मेरी नादानी को भी निज अंतर में सदा सहेजा था मेरे सारे प्रश्नों का वो फ़ौरन जवाब बन जाती थी मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी मै बड़ा हुआ तो कॉलेज से एक रोग प्यार का ले आया जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता ममता को भूल गया हम भूल गए उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी हम भूल गए अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी हम भूल गए वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी हमको सूखा बिस्तर देती थी खुद गीले में सो जाती थी हम भूल गए उसने ही होंठो को भाषा...

कहां पर बोलना है कहां पर बोल जाते है

डाँ. संतोष आडे ​​ कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। ​​ कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं।। ​​ बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं।। ​​ अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं।। ​​ कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

नव गीत (शम्भु नाथ सिंह राउतपार अमेठिया लार देवरिया)

शंभुनाथ सिंह » समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना, किसी को लगा यह मरण का बहाना शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना? प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने मिलन ने जलाए, विरह ने बुझाए। भटकती हुई राह में वंचना की रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की। नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने निशा ने जगाए, उषा ने सुलाए। सुरभि की अनिल-पंख पर मोर भाषा उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा तुहिन-बिन्दु बनकर बिखर पर गए स्वर नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा। किसी के चरण पर वरण-फूल कितने लता ने चढ़ाए, लहर ने बहाए।

कबीर के दोहे (अर्थ सहित)

संत कबीर दास के दोहे गागर में सागर के समान हैं। उनका गूढ़ अर्थ समझ कर यदि कोई उन्हें अपने जीवन में उतारता है तो उसे निश्चय ही मन की शांति के साथ-साथ ईश्वर की प्राप्ति होगी। Kabir Ke Dohe - कबीर के दोहे Related: संत कबीर दास जीवनी Name Kabir Das / कबीर दास Born ठीक से ज्ञात नहीं (1398 या 1440) लहरतारा , निकट वाराणसी Died ठीक से ज्ञात नहीं (1448 या 1518) मगहर Occupation कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना Nationality भारतीय कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित –1– बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। –2– पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप प...

बात बदलती रही

कभी चाहा कभी बेकार गुजरती रही सोचा तो था कि इश्क़ उन्हीं से करेंगे मगर ये सोच हमसे हरबार गुजरती रही क्या चेहरा था और क्या थी उनकी अदा हम दीवाने हो गए और वो संवरती रही नहीं बस मुझ पर नहीं चढ़ा था रंग ए मोहब्बत लोग दीवाने होते रहे वो जहां से गुजरती रही बात जो उनसे कहनी थी मालूम था मगर बात कहने में उनसे बातें बदलती रही

मै स्त्री हूं मै नारी हू

मैं स्त्री हूँ मैं स्त्री हूँ मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ, मैं कली हूँ, मैं फुलवारी हूँ, मैं दर्शन हूँ, मैं दर्पण हूँ मैं नाद में ही गर्जन हुंँ, मैं बेटी हूँ, मैं माता हूँ, मैं बलिदानों की गाता हूँ, मैं श्रीमद्भगवद्गीता हूँ, मैं सीता हूँ। पुरुषों की इस दुनिया में मुझे कैसी नियत दिखलाई। कभी जुए में हार गए कभी अग्निपरीक्षा दिलवाई। । कलयुग हो या सतयुग हो इल्जाम मुझ पर ही आता है। क्यों घनी अंधेरी सड़कों पर चलने से मन घबराता है। । मैं डरती हूँ, मैं मरती हूँ, जब सफर अकेले करती हूँ। धनु का साम्राज्य बढ़ता है, कोई साया पीछा करता है। । मेरी मुट्ठी बन जाती है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है। हे तरल पसीना माथे पर, इनमें मेरी घबराहट होती है। । जाने कि किस का साया है, जाने यह किस का साया है। जाने यह किसकी आहट है, जाने यह किसकी आहट है। । अंधेरे में उन हाथों ने मुझको बाहों में खींच लिया। एक नहीं मुंह पर हाथ रखा, और एक नया चल खींच लिया। । नारी के सम्मान को बिल्कुल तार-तार सा कर दिया। मर्यादा की आंचल को फिर झाड़ झाड़सा कर दिया। । मारा है मुझको, पीटा है, बालों से मुझे घसीटा है। फिर बल बलता कि ...

कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा।

हम डरते नहीं एटम बम्ब, विस्फोटक जलपोतो से हम डरते है ताशकंद और शिमला जैसे समझोतों से सियार भेडिए से डर सकती सिंहो की औलाद नहीं भरत वंश के इस पानी की है तुमको पहचान नहीं भीख में लेकर एटम बम्ब को तुम किस बात पे फूल गए ६५, ७१ और ९९ के युधो को शायद तुम भूल गए तुम याद करो खेतरपाल ने पेटन टैंक जला डाला गुरु गोबिंद के बाज शेखो ने अमरीकी जेट उड़ा डाला तुम याद करो गाजी का बेडा एक झटके में ही डूबा दिया ढाका के जनरल नियाजी को दुद्ध छटी को पिला दिया तुम याद करो उन ९०००० बंदी पाक जवानो को तुम याद करो शिमला समझोता और भारत के एहसानों को पाकिस्तान ये कान खोलकर सुन ले की अबके जंग छिड़ी तो सुन ले नमो निशान नहीं होगा कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा लाल कर दिया तुमने लहू से श्रीनगर की घाटी को किस गफलत में छेड़ रहे तुम सोई हल्दी घाटी को जहर पिला कर मजहब का इन कश्मीरी परवानो को भय और लालच दिखला कर भेज रहे तुम नादानों को खुले पर्शिक्षण है खुले शस्त्र है, खुली हुई नादानी है सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है बहुत हो चुकी मक्कारी, बस बहुत हो चूका हस्ताक्षेप समझा दो उनका वरना भभक उठे गा पूरा ...

रश्मिरथी (कृष्ण दुर्योधन संवाद)

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। 'उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,...

हे भारत के राम जागो, मै तुम्हे जगाने आया हूं

हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ, सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ । सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में आज बता दो कितना पानी, है भारत के वीरो में, खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हे ललकार रही, सोये सिंह जगो भारत के, माता तुम्हे पुकार रही । रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो, पहला शीष चढाने वाले, माँ के वीर पुत्र जागो। बलिदानों के वज्रदंड पर, देशभक्त की ध्वजा जगे, और रण के कंकण पहने है, वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे ।। अग्नि पंथ के पंथी जागो, शीष हथेली पर धरकर, जागो रक्त के भक्त लाडले, जागो सिर के सौदागर, खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा, और रक्त बीज का रक्त चाटने, वाली जागे चामुंडा । नर मुंडो की माला वाला, जगे कपाली कैलाशी, रण की चंडी घर घर नाचे, मौत कहे प्यासी प्यासी, रावण का वध स्वयं करूँगा, कहने वाला राम जगे, और कौरव शेष न एक बचेगा, कहने वाला श्याम जगे ।। परशुराम का परशु जगे, रघुनन्दन का बाण जगे , यदुनंदन का चक्र जगे, अर्जुन का धनुष महान जगे, चोटी वाला चाणक्य जगे, पौरुष का पुरष महान जगे और सेल्यूकस को कसने वाला, चन्द्रगुप्त बलवान जग...

हिंदी भाषण

परम आदरणीय अध्यक्ष प्रबंधक गुरुजन गाड़ छात्र एवं छात्राएं वह दूर से दूर से आए हुए अतिथि गण आप सभी के सामने मैं गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी बधाइयां समर्पित करता हूं और तदुपरांत में उन तमाम वीर शहीदों को नमन करता हूं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया उसके बाद मैं भारत के उन नेताओं को आदरांजली अर्पित करता हूं जिन्होंने आजाद आजाद भारत को एक बहुत अच्छा संविधान दिया जाहिर सी बात है कि हमारे मन में यह सवाल आता है कि आखिर या 26 जनवरी 26 जनवरी के दिन क्यों मनाया जाता है तो इसका सीधा सा जवाब होता है किसी दिन 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को स्वराष्ट्र घोषित किया था यानी कम शब्दों में कहा जाए तो भारत को 1 दिन के लिए आजादी दिया था मेरे हिसाब से लेकिन वाक्य क्या कागजों तक ही सिमट कर रह गया और हमें 26 जनवरी 1947 तक इंतजार करना पड़ा फतवे की सीआई सूखने से पहले लगभग डेढ़ लाख हिंदू मुस्लिम उलेमाओं ने अपनी जान के अजीम कुर्बानी दे दी और आप जान भी सकते हैं कि इंडिया गेट पर उन तमाम वीर शहीदों के नाम लिखे हुए आपको मिल जाएगी कभी आप ज...