नव गीत (शम्भु नाथ सिंह राउतपार अमेठिया लार देवरिया)

शंभुनाथ सिंह » समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना, किसी को लगा यह मरण का बहाना शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना? प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने मिलन ने जलाए, विरह ने बुझाए। भटकती हुई राह में वंचना की रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की। नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने निशा ने जगाए, उषा ने सुलाए। सुरभि की अनिल-पंख पर मोर भाषा उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा तुहिन-बिन्दु बनकर बिखर पर गए स्वर नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा। किसी के चरण पर वरण-फूल कितने लता ने चढ़ाए, लहर ने बहाए।

Comments

Popular posts from this blog

मै स्त्री हूं मै नारी हू

जब आंख खुली तो अम्मा ,की गोदी का एक सहारा था

उधार की कलम से....!