https://www.facebook.com/profile.php?id=100008712765060 जीवन की दस्तूर पुरानी, क्या चलते चलते थक जाना अच्छा है। सफर में हर वक्त जब ठोकर लगे, जीने से तो उस वक्त मर जाना अच्छा है। दुनिया कहती संघर्ष करो लहरों में तूफानों से, कितना अब पहचान बनाए हम अजनबी इंसानों से, शाखो ने भी समझौता किया अब हमारे शानो से, इससे अच्छा तो सांसों का पर जाना ही अच्छा है जीने से तो इस वक्त मर जाना है अच्छा है। क्या अभी नाखून गले है या हमारे करम जले है, सिसक सिसक कर जीने से तो घूट घूट कर मर जाना अच्छा है सफर में हर वक्त जब ठोकर लगे उस वक्त जीने से तो मर जाना अच्छा है। जीवन है दो धारी तलवार अब इसमें क्या खोनी और क्या पानी है अब लगता है, खून नही यह पानी है मीठी खट्टी यह नमकीन जवानी है! माता की आंखों में देखा बाबूजी के हाथों में देखा वही चीत्कार पुरानी है धो न सके अपने यौवन को तपती दुपहरी में बेकार जवानी है। सावन बादल आए भादो का भी आ जाना अच्छा है। कौवे आए पितृपक्ष आया इस पुण्य माह में ही मर जाना अच्छा है जंगल में जब मन रमता हो तो जड़ बन जाना ह...