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Showing posts from September, 2022

उधार की कलम से....!

  उधार की कलम से...✍️ अंदाज-ए-समंदर लिखें  या तुम्हें अपने अंदर लिखें, हर घड़ी तेरी फिक्र करे  या तुझे कलंदर लिखें...? तुम ही बताओ....!  कैसे-कैसे शब्दों से हम तुम्हें नवाजे, या फिर  तुझे अंदाज-ए-बवंडर लिखे...?          -  कवि ऋषि कपूर भारती

फैसला कुदरत का भी बदलेगा

  " अगर सजदो में मजबूती होगी,  तो वक्त कभी न कभी हमे उगलेगा।  तारे गर्दिश में है आज कल तो क्या हुवा फैसला कुदरत का भी कभी बदलेगा।"                             कवि ऋषि कपूर भारती

दरियादिली की तुम कहानी क्यों नहीं लिखते?

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                    दरियादिली कि तुम कहानी क्यों नहीं लिखते  दरियादिली की तुम कहानी क्यों नही लिखते गुजरा है जो बचपन  दुखों के पड़ाव में  जवानी में उसकी कहानी क्यों नहीं लिखते  रंगीन शाम देखकर तुम भूल जाते हो वो गुलामी की बातें  दिया है आक्रांताओं ने जो तुम्हारे भारतवर्ष की छाती पर दर्द  अब तुम उसकी जबानी क्यों नहीं लिखते  लिखते हो तो बस प्यार मोहब्बत की बातें  मौका तुम्हें मिला है जब तो भगत सिंह राजगुरु और उधम सिंह की जवानी क्यों नहीं लिखते क्यों, क्यों उसे लिखने में क्या लज्जा आती है  आती है तो बोलो राज दिलों का खोलो सच् आज तुम बता दो  तुम्हारे सीने में देश का दर्द है  या मोहब्बत का धुआं उठ रहा है  अगर तुम्हारे सीने में देश का दर्द है तो  खोल दो लेखनी की धार  सिखा दो कलम को बगावत  तो लिखो लहू से जिनके भीगे हुए हैं गिरेवां अब तो तुम उन्हें गद्दार लिखो खैर ऋषि के ही कहने पर  लेकिन  गली मोहल्ले और बाजारों में सौ सौ बार लिखो         ...

मर जाना ही अच्छा है!

https://www.facebook.com/profile.php?id=100008712765060 जीवन की दस्तूर पुरानी, क्या चलते चलते थक जाना अच्छा है। सफर में हर वक्त जब ठोकर लगे, जीने से तो उस वक्त मर जाना अच्छा है। दुनिया कहती संघर्ष करो लहरों में तूफानों से, कितना अब पहचान बनाए  हम अजनबी इंसानों से, शाखो ने भी समझौता किया  अब हमारे शानो से, इससे अच्छा तो सांसों का पर जाना ही अच्छा है जीने से तो इस वक्त मर जाना है अच्छा है। क्या अभी नाखून गले है या हमारे करम जले है, सिसक सिसक कर जीने से तो घूट घूट कर मर जाना अच्छा है सफर में हर वक्त जब ठोकर लगे  उस वक्त जीने से तो मर जाना अच्छा है। जीवन है दो धारी तलवार अब इसमें क्या खोनी और क्या पानी है  अब लगता है,  खून नही यह पानी है  मीठी खट्टी यह नमकीन जवानी है! माता की आंखों में देखा  बाबूजी के हाथों में देखा  वही चीत्कार पुरानी है धो न सके अपने यौवन को  तपती दुपहरी में बेकार जवानी है। सावन बादल आए  भादो का भी आ जाना अच्छा है। कौवे आए पितृपक्ष आया  इस पुण्य माह में ही मर जाना अच्छा है जंगल में जब मन रमता हो  तो जड़ बन जाना ह...