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Showing posts from March, 2020

अधूरा ज्ञान

#अधूरा_ज्ञान_खतरनाक_होता_है। 33 करोड़ नहीं 33 कोटि देवी देवता हैं हिंदू धर्म में ; कोटि = प्रकार । देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं । कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता है। हिंदू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उड़ाई गयी की हिन्दूओं के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं... कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में :- 12 प्रकार हैँ :- आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँशभाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...! 8 प्रकार हैं :- वासु:, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। 11 प्रकार हैं :- रुद्र: ,हरबहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। एवँ दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार । कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है । तो इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाएं । यह बहुत ही अच्छी जानकारी है इसे अधिक से अधिक लोगों में बाँटिये और इस कार्य के माध्यम से पुण्य के...

जब आंख खुली तो अम्मा ,की गोदी का एक सहारा था

जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्हा सा अंचल मुझको भूमंडल से प्यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था उसके छाती की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हांथो से बालों को नोचा पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी मैं बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी ऊँगली पकड़ चलाया था पढने विद्यालय भेजा था मेरी नादानी को भी निज अंतर में सदा सहेजा था मेरे सारे प्रश्नों का वो फ़ौरन जवाब बन जाती थी मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी मै बड़ा हुआ तो कॉलेज से एक रोग प्यार का ले आया जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता ममता को भूल गया हम भूल गए उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी हम भूल गए अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी हम भूल गए वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी हमको सूखा बिस्तर देती थी खुद गीले में सो जाती थी हम भूल गए उसने ही होंठो को भाषा...

कहां पर बोलना है कहां पर बोल जाते है

डाँ. संतोष आडे ​​ कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। ​​ कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं।। ​​ बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं।। ​​ अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं।। ​​ बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं।। ​​ कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

नव गीत (शम्भु नाथ सिंह राउतपार अमेठिया लार देवरिया)

शंभुनाथ सिंह » समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना, किसी को लगा यह मरण का बहाना शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना? प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने मिलन ने जलाए, विरह ने बुझाए। भटकती हुई राह में वंचना की रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की। नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने निशा ने जगाए, उषा ने सुलाए। सुरभि की अनिल-पंख पर मोर भाषा उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा तुहिन-बिन्दु बनकर बिखर पर गए स्वर नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा। किसी के चरण पर वरण-फूल कितने लता ने चढ़ाए, लहर ने बहाए।

कबीर के दोहे (अर्थ सहित)

संत कबीर दास के दोहे गागर में सागर के समान हैं। उनका गूढ़ अर्थ समझ कर यदि कोई उन्हें अपने जीवन में उतारता है तो उसे निश्चय ही मन की शांति के साथ-साथ ईश्वर की प्राप्ति होगी। Kabir Ke Dohe - कबीर के दोहे Related: संत कबीर दास जीवनी Name Kabir Das / कबीर दास Born ठीक से ज्ञात नहीं (1398 या 1440) लहरतारा , निकट वाराणसी Died ठीक से ज्ञात नहीं (1448 या 1518) मगहर Occupation कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना Nationality भारतीय कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित –1– बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। –2– पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप प...