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बात बदलती रही

कभी चाहा कभी बेकार गुजरती रही सोचा तो था कि इश्क़ उन्हीं से करेंगे मगर ये सोच हमसे हरबार गुजरती रही क्या चेहरा था और क्या थी उनकी अदा हम दीवाने हो गए और वो संवरती रही नहीं बस मुझ पर नहीं चढ़ा था रंग ए मोहब्बत लोग दीवाने होते रहे वो जहां से गुजरती रही बात जो उनसे कहनी थी मालूम था मगर बात कहने में उनसे बातें बदलती रही

मै स्त्री हूं मै नारी हू

मैं स्त्री हूँ मैं स्त्री हूँ मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ, मैं कली हूँ, मैं फुलवारी हूँ, मैं दर्शन हूँ, मैं दर्पण हूँ मैं नाद में ही गर्जन हुंँ, मैं बेटी हूँ, मैं माता हूँ, मैं बलिदानों की गाता हूँ, मैं श्रीमद्भगवद्गीता हूँ, मैं सीता हूँ। पुरुषों की इस दुनिया में मुझे कैसी नियत दिखलाई। कभी जुए में हार गए कभी अग्निपरीक्षा दिलवाई। । कलयुग हो या सतयुग हो इल्जाम मुझ पर ही आता है। क्यों घनी अंधेरी सड़कों पर चलने से मन घबराता है। । मैं डरती हूँ, मैं मरती हूँ, जब सफर अकेले करती हूँ। धनु का साम्राज्य बढ़ता है, कोई साया पीछा करता है। । मेरी मुट्ठी बन जाती है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है। हे तरल पसीना माथे पर, इनमें मेरी घबराहट होती है। । जाने कि किस का साया है, जाने यह किस का साया है। जाने यह किसकी आहट है, जाने यह किसकी आहट है। । अंधेरे में उन हाथों ने मुझको बाहों में खींच लिया। एक नहीं मुंह पर हाथ रखा, और एक नया चल खींच लिया। । नारी के सम्मान को बिल्कुल तार-तार सा कर दिया। मर्यादा की आंचल को फिर झाड़ झाड़सा कर दिया। । मारा है मुझको, पीटा है, बालों से मुझे घसीटा है। फिर बल बलता कि ...